भगवान राम के गुरु ऋषि वशिष्ठ और राजा कौशिक की कहानी | Vashisht Rishi and Raja Kaushik Kamdhenu Story about Kamdhenu in Hindi
ऋषि वशिष्ठ महान सप्तऋषियों में से एक हैं. महर्षि वशिष्ठ सातवें और अंतिम ऋषि थे. वे श्री राम के गुरु भी थे और सुर्यवंश के राजपुरोहित भी थे. उन्हें ब्रह्माजी का मानस पुत्र भी कहा जाता है. उनके पास कामधेनु गाय और नंदिनी नाम की बेटी थी. ये दोनों ही मायावी थी. कामधेनु और नंदिनी उन्हें सब कुछ दे सकती थी. महर्षि वशिष्ठ की पत्नी का नाम अरुंधती था.
ऋषि वशिष्ठ को मंडल 7 उपन्यास का सबसे प्रमुख लेखक माना जाता है. किन्ही 10 राजाओं की लड़ाई में इन्होने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन युद्ध में भाग लेकर नहीं बल्कि उस युद्ध के बाद एक नकारात्मक भजन लिखकर. उन्होंने भजन इसलिए लिखा की राजाओं को पता चले की आपके अहंकार के कारण कई निर्दोष व्यक्ति की मौत हुई है.
वशिष्ठ ने वशिष्ठ संहिता ग्रन्थ की रचना भी की. वशिष्ठ संहिता में ज्योतिष विद्या और वैदिक प्रणाली का वर्णन किया गया है. वे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के गुरु और इक्ष्वाकु रियासत के राज पुरोहित थे.
ऋषि वशिष्ठ शांति प्रिय, महान और परमज्ञानी थे. ऋषि वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे गुरुकुल की स्थापना की थी. गुरुकुल में हजारों राजकुमार और अन्य सामान्य छात्र गुरु वशिष्ठ से शिक्षा लेते थे. यहाँ पर महर्षि वशिष्ठ और उनकी पत्नी अरुंधती विद्यार्थियों को शिक्षा देते थे. विद्यार्थी गुरुकुल में ही रहते थे. ऋषि वशिष्ठ गुरुकुल के प्रधानाचार्य थे.
वशिष्ठ ऋषि अपने समय में सतगुरु रह चुके है. गुरुकुल में वे शिष्यों को 20 से अधिक कलाओं का ज्ञान देते थे. ऋषि वशिष्ठ के पास पूरे ब्रह्माण्ड और भगवानों से जुड़ा सारा ज्ञान था. उनके लिखे कई श्लोक और अध्याय वेदों में आज भी है.
महर्षि वशिष्ठ और कामधेनु (Story of Kamdhenu and Maharishi Vashisht in Hindi)
महर्षि वशिष्ठ के पास कामधेनु गाय थी जो कि एक पूरी सेना के लिए खाना या किसी भी चीज़ का उत्पादन कर सकती थी. महर्षि विश्वामित्र(राजा कौशिक) एक बार महर्षि वशिष्ठ के आश्रम आये, उन्होंने कामधेनु की माया देखी वे कामधेनु से बहुत प्रभावित हुए वे कामधेनु को पाना चाहते थे. उन्होंने कामधेनु को ज़बरदस्ती बंधी बनाना चाहा पर कामधेनु की शक्तियां कौशिक राजा से अधिक थी. राजा कामधेनु को हासिल नहीं कर पाए क्योंकि राजा कौशिक की शक्तियां कामधेनु से कम थी. वे महर्षि वशिष्ठ के समान सन्यासी बनने चले गए. आगे जाकर महाराजा कौशिक को लोग विश्वामित्र कहने लगे.
महर्षि विश्वामित्र ने तप करके भगवान शिव से कई शस्त्र और आशीर्वाद प्राप्त किये. उन अस्त्र-शस्त्र और आशीर्वाद को प्राप्त करने के बाद महर्षि विश्वामित्र एक बार फिर कामधेनु को हासिल करने के लिए गए. उनकी दूसरी कोशिश भी नाकाम रही उनके पास जो अस्त्र-शस्त्र थे वो भी कामधेनु को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं थे. जब विश्वामित्र दूसरी बार असफल हुए तब उन्होंने कामधेनु को हासिल करने का ख्याल अपने मन से निकाल दिया और पूर्ण ब्रह्मऋषि बनने के लिए वन चले गए.
विश्वामित्र ने पूरे राज्य और संपत्ति का त्याग कर दिया था. त्याग करने के बाद विश्वामित्र अपना बचा हुआ जीवन वन में बिताने चले गये.
महर्षि वशिष्ठ आश्रम (Maharishi Vashisht Aasharam)
अयोध्या में 40 एकड़ की ज़मीन पर महर्षि वशिष्ठ का आश्रम था. आज के समय का वशिष्ठ आश्रम पुराने आश्रम का सिर्फ एक चौथाई हिस्सा ही रह गया है. ऐसा माना जाता है की आश्रम में एक कुआँ है जहां से सरयु नदी निकलती है. उस समय इक्ष्वाकू अयोध्या के राजा थे. वे शांति प्रिय राजा थे और जनता की भलाई के लिए ही शासन करते थे.
एक समय अयोध्या में सूखा पड़ गया. राजा इक्ष्वाकू ने महर्षि वशिष्ठ से कहा कि आप ही इसका कुछ उपाय निकालिए. तब महर्षि वशिष्ठ ने विशेष यज्ञ किया और यज्ञ के संपन्न होते ही सरयू नदी आश्रम के कुएँ से बहने लगी. आज के समय में सरयू नदी को वाशिष्ठी और इक्श्वाकी के नाम से भी जाना जाता है.
ऐसा कहा जाता है की आश्रम के अन्दर का कुआँ नदी से जुड़ा हुआ है. जो यात्री तीर्थ यात्रा के लिए जाते है वे यहाँ पर इस कुएँ को देखने के लिए भी आते है. महर्षि वशिष्ठ के इस आश्रम को एक संपन्न तीर्थ स्थल माना जाता है.
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