हिंदू धर्म में गाय का महत्व व गाय से जुडी रोचक कहानियाँ | Importance of Cow in Hindu Mythology

हिन्दू धर्मं में गाय का महत्व, प्रकार(कामधेनु, नंदी, पोंड्रक) और उससे जुड़ी कहानियाँ | Importance, Types(Kamdhenu, Nandi, Paundraka) and Stories of Cow in Hindu Mythology

एक कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत का प्रकृति और इसमें मौजूद विभिन्न प्राणियों से सम्बन्ध रहा हैं. ये नजदीकी संबंध हमारे दैनिक जीवन में उनका योगदान और अध्यात्मिक गुरु का स्वरूप ये सभी बातें मिलकर एक रहस्यमय सह-अस्तित्व का निर्माण करती हैं. वे लोककथाओं और हमारी रोजमर्रा की जिंदगी दोनों में एक साथ मौजूद हैं. इतिहास, प्रकृति और मानवता का ऐसा संगम बहुत कम ही देखने को मिलता हैं.

क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म में क्यों गाय को माता का दर्जा दिया हैं. आइये जानते है जानवरों से जुड़ी हिन्दू धर्म पौराणिक कथाओं के बारे में.

गाय (Gaay ka Mahatv)

भारतीय संस्कृति में गाय सिर्फ पूजनीय ही नहीं बल्कि प्रतिष्ठित भी हैं. गाय के तीन रूप कामधेनु, नंदी और पोंड्रक हैं. सबसे पहले हम जानेंगे कामधेनु के बारे में.

कामधेनु (Kamdhenu)

कामधेनु वही गौ है जिससे हमारी सभी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति होती हैं. कामधेनु का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था और ये सात देवताओं द्वारा ग्रहण की गयी थी. ये वही सात देवता जिनसे आसमान में सप्त ऋषि नक्षत्र बना हैं. रावण पर विजय प्राप्त करने वाले कर्त्य वीर अर्जुन की सेना का पेट भी इसी कामधेनु ने भरा था. कामधेनु सभी गायों की माता हैं और उसे सुरभि, सबल, अदिति और कामदुह भी कहते हैं.

वैशाख महीने के पहले दिन ब्रह्माजी ने गाय की रचना की थी. इसे चाहने वाले ग्वाले इस पवित्र जीव के खुर और सिंग को रंगों से सजाते हैं. गौमाता को नदी में पूरे रस्मों-रिवाज से नहलाया जाता हैं और बच्चों को गाय के नीचे से ले जाने की भी परंपरा हैं. गाय के भाग्य और आशीर्वाद से किसी अपशगुन को रोकने के लिए ऐसा किया जाता हैं.

गाय के चारो पैर हिन्दू धर्म के चारों वेदों के प्रतीक हैं. इसके शरीर के हर हिस्से का मतलब हैं. जैसे गाय के सिंग देवताओं का प्रतीक हैं, मुख सूर्य और चन्द्र का, कंधे अग्नि का और मजबूत पैर हिमालय का प्रतीक हैं. देवताओं से गाय का सम्बन्ध अनूठा हैं, क्योकिं वो स्वयं तो पूजनीय हैं साथ ही अवतारों की भक्त भी हैं. वो दिव्या हिन्दू माता देवी हैं. उसके उर्जा चक्र में शामिल हैं ब्रम्हा, विष्णु, शिव, अग्नि, वायु, भगवान कृष्ण, देवी दुर्गा, लक्ष्मी और देवी काली के भी इस ईश्वरीय प्राणी के साथ सम्बन्ध हैं. इसके अलावा कामधेनु धर्म की भी प्रतीक हैं.

दुनिया के पहले सत्य के काल सतयुग में अपने चारो पैरो पर खड़ी थी. दुसरे युग अर्थात त्रेता युग में वो तीन पैरो पर खड़ी थी. इसके बाद द्वापर में वह दो और विनाशकारी कलयुग व वर्तमान युग में केवल एक पर खड़ी है.

इसे भी पढ़े : गाय के गोबर से व्यवसाय, गोबर गैस और फायदे

नंदी (Nandi)

गौमाता का दूसरा पौराणिक स्वरुप नंदी हैं. जो स्वयं एक देव हैं. इसे प्राचीन काल का बैल माना जाता हैं, आनंद का देव नंदकेश्वर. इसे बैल के सिर वाले आदमी के रूप में भी दर्शाया गया हैं. फूलो और आभूषणो से सजा नंदी उर्वरता और परिपूर्णता का प्रतीक हैं. नंदी भगवान और इंसान के बीच एक कड़ी हैं. भगवान शिव का वाहन और रक्षक नंदी उनके हर मंदिर में नजर आता हैं. उसे शिव का द्वारपाल भी कहा जाता है.

देवों और असुरों ने साथ मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था लेकिन मंथन के बाद जो सबसे पहले उनके हाथ लगा. वह था हलाहल विष. दुनिया की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस हलाहल विष का पान किया. शिव जी पास खड़ी माता पार्वती ने शिव जी के गले को कसकर पकड़ लिया जिससे विष उनके गले के नीचे नहीं उतर सका. इस कारण भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता हैं. जब शिव जी विष का पान कर रहे थे तब थोडा विष जमीन पर गिर गया था. अपने स्वामी को विष का पान करते देख नंदी ने उस जमीन पर गिरे विष का पान कर लिया. नंदी की इस हरकत से सभी देव हैरान रह गए थे. भगवान शिव देवता थे और उनकी रक्षा के लिए देवी पार्वती थी. इसलिए उन्हें कुछ नहीं हुआ. लेकिन आश्चर्य की बात यह थी की नंदी को भी कुछ नहीं हुआ. भगवान शिव ने कहा कि नंदी मेरा सबसे बड़ा शिव भक्त हैं. मेरी सारी शक्तियां उसकी भी हैं. माता पार्वती की सुरक्षा उस तक भी जरुर पहुँचेगी.

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार नंदी 18 स्वामियों का गुरु हैं. जिनमे योगसूत्र लिखने वाले महर्षि पतंजलि भी शामिल हैं. योगिक नजरिये से देखे तो नंदी भगवान शिव के प्रति समर्पित मन हैं. वो शिव जो सम्पूर्ण हैं. पौराणिक कथा के अनुसार प्रजापति ब्रह्मा ने शिव को नंदी बैल दिया. एक मान्यता यह भी है कि उन्होंने स्वयं धर्म के प्रतीक स्वरूप बैल का रूप धारण कर लिया और मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए मृत्यु की दूसरी और खड़े हो गए.

पोंड्रक (Paundraka)

यह गाय का तीसरा स्वरुप है जो मृत्यु के देवता यम का वाहन और एक काला भैसा हैं. माना जाता हैं कि पोंड्रक का जन्म रूद्र की जांघ से हुआ था. जो शिव का ही एक स्वरूप हैं. पोंड्रक का काला रंग उस अनजान दुनिया का प्रतीक हैं जहां इंसान अपनी मृत्यु के बाद जाता हैं. ऐसा माना जाता हैं कि भैस सबसे नासमझ प्राणियों में से एक हैं. मृत्यु भी नासमझ की तरह आकर हमारे प्राण उम्र, हैसियत या अन्य सामाजिक मापदंड को देखे बगैर ले जाती हैं.

इसे भी पढ़े : आइये जानते है कैसे गाय के 25 किलो गोबर से हो सकता है पूरे घर की रसोई का काम

इसे भी पढ़े : गाय का दूध अमृत है तो मूत्र स्वर्ण वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया पूरी खबर पढ़े..

Leave a Comment