India First Movie Raja Harishchandra in Hindi भारत के सिनेमा जगत को लगभग 105 साल हो चुके हैं भारत की पहली फिल्म आज से 105 साल पहले 3 मई 1913 को रिलीज़ की गयी थी इस फिल्म का नाम रखा गया था राजा हरिश्चंद्र.
इस फिल्म को दादा साहब फाल्के ने बनाया था. दादा साहब फाल्के को फिल्म उद्योग का जनक कहा जाता हैं. उनसे पहले भारत में कभी किसी ने फिल्म शब्द का नाम भी नहीं सुना था.
दादा साहब फाल्के एक फिल्म प्रोडयूसर, स्क्रीनराइटर और डायरेक्टर थे. भारत की पहली फिल्म हिंदी, मराठी, तमिल या तेलगू नहीं थी. राजा हरिश्चंद्र एक मूक (silent) फिल्म थी. क्योंकि तब तक फिल्मों के लिए ऑडियो का आविष्कार ही नहीं हुआ था.
यहां से मिली थी प्रेरणा (Inspiration of First Indian Film Raja Harishchandra)
दादा साहब फाल्के को फिल्म बनाने की प्रेरणा 14 अप्रैल 1911 को मिली. जब दादा साहब अपने बड़े भाई बालचंद्र के साथ गिरगाँव (मुंबई) के एक थिएटर “अमेरिका-इंडिया थिएटर” फिल्म “अमेजिंग एनिमल” देखने के लिए गए. यह वह पहला पल था जब उन्होंने किसी परदे पर किसी को चलते हुए देखा था.
इस फिल्म को देखने के बाद दादा साहब के बड़े भाई बालचंद्र ने परिवार के सभी सदस्यों माँ-पिता और पत्नी सभी को इसके बारे में बताया लेकिन उनके परिवार में किसी को भी उनकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था.
इस बात का विश्वास दिलवाने के लिए अगले दिन फाल्के पुरे परिवार के साथ फिल्म देखने के लिए गया. किसी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ.
इस तरह यह सिलसिला चलता रहा और दादा साहब को फिल्मों से प्यार होते चला गया.
इसी साल के अंत में एस्टर के समय जब दादा साहब थिएटर फिल्म “द लाइफ ऑफ़ क्राइस्ट” देखने पहुंचे. उन्होंने फिल्मी परदे पर जीसस को देखा. उनके दिमाग में ख्याल आया कि ख़ास उन्हें फ़िल्मी परदे पर कृष्ण और राम को भी देखने का सौभाग्य मिल जाता.
यही वह पल था जब दादा साहब ने यह तय कर लिया कि वह भारत में भी फिल्म बनायेंगे जो कि भारतीय संस्कृति के बारे में लोगों को बताएगी.
सफ़र
दादा साहब ने फिल्म बनाने के उद्देश तय करने के बाद वह फिल्म कैसे बनाते हैं यह सिखने के लिए लंदन के लिए रवाना हुए. दो हफ़्तों का रास्ता तय करके और फिल्म बनाना सीखकर दादा साहब फिर भारत आ गए.
भारत में आकर उन्होंने 1 अप्रैल 1912 को “फाल्के फिल्म” की नीव रखी. दादा साहब ने अपनी लंदन यात्रा के दौरान ही Williamson camera और Kodak raw films का आर्डर दे दिया था जो कि मई तक उनके पास पहुँच गया. और यही से शुरू हुआ फिल्म शूट करने का सफ़र.
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फिल्म बनाने के दौरान आई मुश्किलें (Problems With the First Indian Film Raja Harishchandra)
फिल्म कैसे बनाते हैं और इससे सम्बंधित सभी चीज़े खरीद लेने के बाद भी दादा साहब के सामने कई मुश्किलें थी. जिसमे से सबसे अहम् थी फिल्म के लिए कोई प्रोडयूसर ढूँढना.
उस समय कोई भी फिल्मों में पैसा लगाने को तैयार नहीं था. इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि तब तक फिल्मों के बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे.
प्रोडयूसर को यह समझाने के लिए वह फिल्म बना सकते हैं इसके लिए दादा साहब के कुछ चुने हुए लोगों के लिए खास “मटर के पौधे के विकास” की एक फिल्म बनाई.
यह फिल्म देखने के बाद यशवंतराव नाडकर्णी और नारायणराव देव्हारे उन्हें लोन देने को तैयार हो गए.
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कास्टिंग (Casting of First Indian Film Raja Harishchandra)
दादा साहब फाल्के ने इस फिल्म में अभिनय करने के लिए अखबार में एक इश्तेहार छपवाया. जिसमे उन्होंने फिल्म के लिए कास्ट और क्रू की आवश्यकताएं निकाली.
अखबार में विज्ञापन पढकर दादा साहब के पास हजारों एप्लीकेशन आ गई. लेकिन उनमे से किसी का भी काम उन्हें पसंद नहीं आया.
यह एक मूक फिल्म थी इसीलिए उन्होंने मुकबाधिर लोगों को भी कास्ट करने के बारे में सोचा लेकिन बाद में उन्हें यह खयाल भी छोड़ना पड़ा.
आखिरकार दादा साहब को अभिनेताओं की खोज के लिए थिएटर का रुख करना पड़ा. पदुरंग गढ़ाधर सने और गजानन वासुदेव वह पहले कलाकार थे जो फाल्के फिल्म से जुड़े.
गजानन और सने ने ही दत्तात्रेय दामोदर दबके की पहली बार दादा साहब से मुलाकात करवाई. दबके की पर्सनालिटी और कद-काठी देखकर उन्होंने फिल्म के लीड रोल(राजा हरिश्चंद्र) के लिए दबके को साइन कर लिया.
शूटिंग और रिलीज़ (Release and shooting of First Indian Film Raja Harishchandra)
एक बार फिल्म की पूरी कास्ट तय होने के बाद दादर मेन रोड पर स्थित स्टूडियो पर दादा साहब ने फिल्म की शूटिंग शुरू की. 50 मिनिट की इस फिल्म को शूट करने में कुल 21 दिन का समय लगा.
पहली फिल्म की शूटिंग के लिए दादा साहब ने कलाकारों को 40 रूपए का सैलरी दी.
फिल्म पूरी हो जाने के बाद 21 अप्रैल 1913 को इस फिल्म का प्रीमियर ओलम्पिया थिएटर, ग्रैंड रोड पर किया गया जहाँ पर जाने माने कुछ लोगों को न्योता दिया गया.
3मई 1913 को यह फिल्म आम जनता के लिए बॉम्बे कॉर्ननेशन सिनेमा, गिरगाँव में लगी. इस फिल्म से दादा साहब को जबरदस्त सफलता हाथ लगी और हजारों की जनता फिल्म देखने के लिए सिनेमा के बाहर जमा हो गयी.
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