which direction is suitable for Mukhya Dwar Vastu हमारी सभ्यता में भवन निर्माण में वास्तु का बड़ा महत्त्व दिया गया हैं हमारे पुराणों में भी वास्तु का बहुत ज़िक्र हुआ है. यदि कोई घर वास्तु के अनुसार नहीं बना है तो ऐसा देख जाता है कि वहाँ हमेशा परेशानी बनी रहती हैं. लाख जतन करने के बाद भी समस्याएँ हल नहीं होती हैं. व्यक्ति इसका दोष फिर भाग्य को देने लग जाता हैं इस बात से अनजान कि उसकी समस्या घर के मुख्य द्वार (Mukhya Dwar / Main Door) की वजह से रही हैं. आज हम आपको बताएँगे कि वास्तु में घर के मुख्य द्वार के बारे में क्या उल्लेख किया गया हैं और इसे किस दिशा में बनवाने से सुख और धन की प्राप्ति होती हैं.
शुभ फलदायक मुख्य द्वार का वास्तु ( which direction is suitable for mukhya dwar)
वास्तुशास्त्र के अनुसार चार दिशाओं में कुल 32 देवता निवास करते हैं. देवता के अनुसार मुख्य द्वारा से शुभ और अशुभ की प्राप्ति होती हैं इसीलिए घर का मुख्य द्वार बनवाने से पहले दिशा और देवता के बारे में ज्ञात कर ले. हर दिशा में घर के मुख्य द्वारा को 7-8 खण्डों में बाटा जाता हैं, किस दिशा में किस खंड पर मुख्य द्वार बनाने से क्या शुभाशुभ फल प्राप्त होता हैं, इसे निम्नलिखित प्रकार से समझे.
पूर्व दिशा( Purv Disha / East direction Mukhya Dwar )
1. शिखी (Shikhi Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनाने से दुःख, हानि और अग्नि का भय होता हैं.
2. पर्जन्य (parjanya Dwar) –इस स्थान पर द्वार बनवाने से परिवार में कन्याओं की वृध्दि, निर्धनता,था शोक होता है.
3. जयंत (jayant Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनाने से धन की प्राप्ति होती हैं.
4. इन्द्र (Indra Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनाने से धन प्राप्त होता हैं.
5 सत्य (Satya Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनाने से घर में चोरी, कन्याओं का जन्म तथा असत्य भाषण की अधिकता होती हैं.
6. भ्रश (Bhrash Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनाने से क्रूरता, अति क्रोध और अपुत्रता तथा संतान हानि हो सकती हैं.
7. अन्तरिक्ष (Antariksh Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनाने से चोरी का भय रहता हैं. और अनेक प्रकार की हानि होने की संभावना बनी रहती हैं.
दक्षिण (Dakshin Disha / South direction Mukhya Dwar)
1. अनिल (Anil Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से संतान की कमी था मृत्यु की संभावना बनी रहती हैं.
2. पुषा (Pusha Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से दासत्व तथा बंधन की प्राप्ति होती हैं
3. वितथ (Vitath Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से निजता और भय की प्राप्ति होती हैं.
4. ब्रह्त्क्षत (Brahtsht Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से धन और पुत्र की प्राप्ति होती हैं.
5. यम (Yam Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से धन की वृद्धि होती हैं.
6. गन्धर्व (Gandharv Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से निर्भयता तथा यश की प्राप्ति होती हैं.
7. भृंगराज (Bhrangraj Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से निर्धनता, चोर भय था व्याधि होती हैं.
8. मृग (Mrug Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से पुत्र के बल का नाश, निर्बलता तथा रोग भय होता हैं.
पश्चिम (Pakshim Disha / West direction Mukhya Dwar)
1. पिता (Pita Dwar) : इस स्थान पर द्वार बनवाने से पुत्र हानि, निर्धनतातथा शत्रुओं की वृद्धि होती हैं.
2. दौवारिक (Dauvarik Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से स्त्री दुःख तथा शत्रु होती हैं.
3. सुग्रीव (Sugreev Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं.
4. पुष्पदंत (pushpdant Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से पुत्र और धन की प्राप्ति होती हैं.
5. वरुण (Varun Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं.
6. असुर (Asur Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से राजभय तथा दुर्भाग्य प्राप्त होता हैं.
7.शोष (Shosh Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से धन का नाश और दुखों की प्राप्ति होती हैं.
8. पापयक्ष्मा (Papyakshma Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से रोग तथा शोक की प्राप्ति होती हैं.
उत्तर दिशा (Utar Disha / North direction Mukhya Dwar)
1. रोग (Rog Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से मृत्यु, बंधन, स्त्री हानि, शत्रु वृद्धि तथा निर्धनता होती हैं.
2. नाग (Naag Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से शत्रु वृद्धि, निर्बलता, दुःख तथा स्त्री दोष होता हैं.
3. मुख्य (Mukhya Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से हानि होती हैं.
4. भल्लाट (Bhallat Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से धन्य-धान्य तथा सम्पति की प्राप्ति होती हैं.
5. सोम (Som Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से पुत्र, धन और सुख की प्राप्ति होती हैं.
6. भुजंग (Bhujang Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से शत्रुता था दुखो की प्राप्ति होती हैं.
7. अदिति (Aditi Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से स्त्रियों में दोष,शत्रुओं से बाधा तथा भय एवम शोक की प्राप्ति होती हैं.
8. दिति (Diti Dwar) – इस स्थान पर द्वार बनवाने से निर्धनता, रोग, दुःख तथा विग्न बाधा होती हैं.
मुख्य द्वार बनाने हेतु (Best direction for making main door)
पूर्व मुखी मकान में सूर्य, इंद्र, जयंत, दक्षिण मुखी मकान में यम, वृहतक्षत व गंधर्व पश्चिम मुखी मकान में सुग्रीव पुष्पदंत व वरुण तथा उत्तर मुखी मकान में भल्लाट व सोम यह स्थानं निसंदेह उत्तम माने जाते हैं
दरवाजे की ऊँचाई (what would be height of door)
साधारण नियम यह है कि चौड़ाई से दुगनी दरवाजे की ऊंचाई होनी चाहिए यह एक वैज्ञानिक विधान है परंतु यह सावधानी बरतनी चाहिए कि दरवाजे की चौड़ाई 4 फुट या कम से कम 3:30 फुट अवश्य हो ब्रहत संहिता में दरवाजे की ऊंचाई चौड़ाई से तिगुनी तक रखने की बात कही गई है.
दरवाजे की सुन्दरता
द्वार की कलात्मकता या किसी के चित्र से उसकी शोभा बढ़ जाती है. प्राचीन भवनों और मंदिरों में यह परंपरा सर्वत्र विद्यमान है सादा दरवाजा निषिद्ध है. “मत्स्य पुराण” एवं “ब्रहत संहिता” आदि ग्रंथों में द्वारभूषा संबंधी शिल्पकला पर काफी जानकारी दी गई है. द्वारभूषा का विधान देवालयों के लिए है यह आवासीय भवनों के लिए आवश्यक नहीं है यदि आप चाहे तो द्वार पर लक्ष्मी या सरस्वती का चित्र लगाकर उसे मालाओं आदि से विभूषित कर सकते है.
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