अश्वत्थामा की कहानी | Story of Mahabharat Warrior Ashwatthama in Hindi

Full Story of Mahabharat Warrier Ashwatthama, his birth, Role in War and Mystery | अश्वत्थामा की कहानी, महाभारत में युद्ध और उनसे जुड़े रहस्य

महाभारत ऐसा महाकाव्य हैं जो कि हिन्दू धर्मं का आधार हैं. महाभारत महाकाव्य श्री गणेश के हाथो से लिखा गया था. इसे वेदव्यास ने बोला था. महाभारत में कौरव और पांडवो के बीच राज्य प्राप्ति के लिए युद्ध हुआ था. इस युद्ध में कौरवो की तरफ से गुरु श्री द्रोणाचार्य ने भाग लिया था. द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने भी कौरवो की तरफ से युद्ध लड़ा था. अश्वत्थामा एक महान योद्धा था. आज हम आपको महाभारत के अमर योद्धा अश्वत्थामा के बारे में बताएँगे.

अश्वत्थामा का जन्म और बचपन (Ashwatthama Birth and Childhood)

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र था उसका जन्म महाभारत काल में यानि द्वापरयुग में हुआ था. द्रोणाचार्य को संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तो वे भटकते-भटकते हिमाचल की वादियों में पहुँच गए. वहां पर उन्होंने तेपेश्वर महादेव नामक स्वयंभू शिवलिंग की पूजा अर्चना कर एक पुत्र की प्राप्ति की. कहा जाता है की अश्वत्थामा भगवान शिव का ही अंश था. अश्वत्थामा के सर पर एक मणि थी जो कि उसे किसी भी राक्षस, असुर, मानव, जानवर, देव के सामने निडर बनाए रखती थी. अश्वत्थामा के सर की मणि उसके जन्म से ही थी.

इनकी माता का नाम कृपि था. कृपि और द्रोणाचार्य काफी संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया. अश्वत्थामा को दूध भी पीने को नहीं मिलता था. जब उनकी गरीबी चरम सीमा पर पहुँच गई. तब द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिया. वहां उन्होंने कौरवो और पांडवो को शिक्षा दी, पांडवो और कौरवो के साथ-साथ ही उन्होंने अश्वत्थामा को भी शस्त्र और शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया.

अश्वत्थामा की शिक्षा (Ashwatthama Ki Shiksha)

अश्वत्थामा, महाभारत के महान योद्धाओं में से एक था. जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी कहलाता था. लेकिन अश्वत्थामा ने ये गलती की कि उन्होंने कौरवो का साथ दिया क्योंकि उनके पिता द्रोणाचार्य ने भी कौरवो का साथ दिया था. द्रोणाचार्य ने ये सोचकर कौरवो का साथ दिया था कि राज्य से निष्ठा रखते हुए वे राज्य के खिलाफ लड़ नहीं सकते थे.

युद्ध के समय उन्हें किसी भी कौरव या अन्य योद्धा की ज़रूरत नहीं थी. द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा ही एक समय पांडवो की सेना पर भारी पड़ रहे थे. तब भगवान श्री कृष्ण को युक्ति आई उन्होंने सोचा कि क्यों न गुरुदेव को बल से नहीं छल से पराजित किया जाए.

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महाभारत में अश्वत्थामा (Ashwatthama in Mahabharat)

भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा की आप गुरु द्रोण को कहिये की अश्वत्थामा युद्ध में मारा गया जिससे गुरुदेव शोक में डूबकर अपने हथियार त्याग देंगे. युधिष्ठिर ने कहा की धर्म की रक्षा के लिए मैं गुरुदेव के खिलाफ छ्ल करने के लिए भी तैयार हूँ. कृष्ण भीम एक हाथी की और इशारा करते हुए कहा की उस हाथी का नाम तो बताइए मजले भैया. भीम कृष्ण जी की युक्ति समझ गए और उस हाथी को मार कर गुरु द्रोण के सामने चले गए और कहने लगे की गुरुवर मैंने अश्वत्थामा को मार डाला पर द्रोणाचार्य को भरोसा नहीं हुआ उन्होंने अपने सारथि को कहा की रथ को युधिष्ठिर की तरफ ले चलो.

युधिष्ठिर के रथ के सामने पहुँचते ही उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि क्या ये सत्य है कि अश्वत्थामा की मृत्यु हो चुकी है. तब युधिष्ठिर ने कहा कि हाँ अश्वत्थामा मारा गया परंतु हाथी. लेकिन जिस वक्त युधिष्ठिर ने कहा परन्तु हाथी उस समय कृष्ण ने शंखनाद कर दिया था जिससे गुरु द्रोण को लगा की अश्वत्थामा उनका पुत्र मारा गया इस तरह युधिष्ठिर के मुँह से झूठ नहीं निकला.

ये बात धर्मराज युधिष्ठिर के मुंह से सुनने के बाद द्रोणाचार्य शोक में डूबकर अपने सारे शस्त्र ज़मीन पर डाल दिये और शोक मनाने लगे शोक में डूबे हुए द्रोणाचार्ये को निहत्था पाकर द्रौपदी के भाई ध्रिश्टद्यूमन ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया.

पिता की मौत से अश्वत्थामा बहुत गुस्से में था. उसे पांडवो पर बहुत गुस्सा आ रहा था उसने महाभारत के युद्ध के बाद ठान लिया की वो पाँचों पांडवो को मार डालेगा. वो पांडवो के शिविर तक गया और द्रोपदी के बेटों को पांडव समझ कर मार दिया.जब द्रौपदी को ये बात पता चली तो उसने अर्जुन सहित सभी पांडवो को अस्वत्थामा को लाने को कहा अर्जुन ने कसम खाई थी की वो अस्वत्थामा को द्रौपदी के सामने ले जाकर उसे दंड देगा सभी पांडव कृष्ण जी के साथ अश्वत्थामा को लेने गए.

वहाँ पर अश्वत्थामा से छोटा सा युद्ध हुआ जिसमे अश्वत्थामा ने सभी पांडवो को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया. उसी समय अर्जुन ने भी ब्रम्हास्त्र चला दिया ऋषि मुनियों के समझाने के बाद अर्जुन ने तो अपना ब्रम्हास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा को ब्रम्हास्त्र वापस लेना नहीं आता था तो उसने ब्रम्हास्त्र अभिमन्यु की विधवा की कोख में पल रहे बच्चे को मारने के लिए चला दिया. उससे उसकी जान चली गयी. उसके बाद भगवान कृष्ण ने उसे श्राप दिया की वो 6000 सालों तक बेसहारा बनकर घूमेगा उसे कोई भोजन नहीं देगा और उसके सर से वो मणि ले ली.

अश्वत्थामा का रहस्य (Mystery of Ashwatthama)

सूत्रों से पता चलता है कि अश्वत्थामा की आज भी मध्यप्रदेश के कई जंगलो में होने की और देखे जाने की खबर की पुष्टि की गयी है. वह उत्तराखंड में ही देखे जा चुके है. अश्वत्थामा के होने का पता कुछ ऐसे चलता है कि जंगलों में अश्वत्थामा अपने सर से निकलते हुए खून और दर्द के कारण चिल्लाते है.

कहते है कि अश्वत्थामा आज भी मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में उतावली नदी में स्नानकर के शिव मंदिर में पूजा करते है. वही पास में एक पहाड़ों के बीच एक तालाब भी है जो कि कभी सूखता नहीं फिर चाहे कितनी भी गर्मी क्यू न हो.

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