जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जीवन और सन्यास की कहानी | Jain Lord Mahavira Swami Life History, Teachings & Death in Hindi
भगवान महावीर जैन समाज के 24वें तीर्थंकर थे. तीर्थंकर मतलब जो इंसान के रूप में महान आत्मा या भगवान जो कि अपने ध्यान और ईश्वर की तपस्या से भगवान बना हो. किसी भी जैन के लिए महावीर किसी भगवान से कम नहीं है उनके दर्शन करने को गीता के ज्ञान के समान माना गया है. इनके बचपन का नाम वर्धमान था. 30 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर त्यागकर लोगों के मन में आध्यात्मिक जागृति के लिए संन्यास ले लिया और अगले साढ़े 12 वर्षों तक उन्होंने गहरा तप और ध्यान किया. तप से ज्ञान अर्जित कर लेने के बाद भगवान महावीर ने पूरे भारतवर्ष में अगले 30 सालों तक जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया.
क्र. म. | बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
1. | नाम(Name) | महावीर |
2. | वास्तविक नाम (Real Name) | वर्धमान |
3. | जन्म(Birth) | 599 ईसा पूर्व |
4. | जन्म स्थान (Birth Place) | कुंडलग्राम |
5. | पत्नी का नाम (Wife Name) | यशोदा |
6. | वंश(Dynasty) | इक्ष्वाकु |
7. | पिता (Father Name) | राजा सिद्धार्थ |
8. | पुत्र(Son) | प्रियदर्शन |
9. | मोक्षप्राप्ति(Death) | 527 ईसा पूर्व |
10. | मोक्षप्राप्ति स्थान(Death Place) | पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार |
शुरूआती जीवन (Mahavira Intial Life in Hindi)
भगवान महावीर, राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे. इनका जन्म 599 ईसा पूर्व में चैत्र महीने के 13वें दिन शुक्ल पक्ष में हुआ था. ग्रेगोरियन कैलेंडर(Gregorian calendar) के अनुसार इनका जन्म मार्च या अप्रैल के महीने में हुआ था. कुछ लोगों का कहना है कि महावीर स्वामी का जन्म क्षत्रियकुंड राज्य में हुआ था.
जब रानी त्रिशला गर्भवती थी तब उन्होंने जैन ग्रंथों में 14 सपनों के बारे में पढ़ा था जिसे पढ़कर महान पुत्र की प्राप्ति होती हैं. उनके माता-पिता जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के भक्त थे. वर्धमान बचपन में शांत परन्तु बहादुर बालक थे. उन्होंने अपनी बहादुरी कई बार दिखाकर अपने परिवार को मुश्किल हालातों से बचाया था.
एक राजकुमार होने के बावजूद भी वह साधारण जीवन पसंद करते थे. अपने माता-पिता की आज्ञा से उन्होंने राजकुमारी यशोदा से शादी की. इनकी एक बेटी भी हुई जिसका नाम प्रियदर्शना था.
महावीर स्वामी द्वारा किये गए त्याग
जब महावीर 28 साल के थे तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी. बाद में उनके बड़े भाई ने अपने पिता की राजगद्दी संभाली. वर्धमान ने अपने बड़े भाई से आज्ञा ली कि वे घर को छोड़कर कहीं और जाना चाहते है. उनके भाई ने बहुत मनाया लेकिन वह नहीं माने.
2 साल बाद उन्होंने घर त्याग दिया और वन में जाकर तप और ध्यान करना शुरू कर दिया जब वन जा रहे थे तब अपने मुंह से नमो सिद्धाणं बोलकर एक भगवा कपडे के साथ चले गए.
तपस्या और सर्वज्ञता (Mahavira Tapasya)
महावीर स्वामी ने अपने जीवन के 12 साल तप किया. इस दौरान उन्होंने शांति प्राप्त की, अपने गुस्से पर काबू करना सिखा, हर प्राणी के साथ उन्होंने अहिंसा की नीति अपनाई.
जिसके बाद वह कई जगह जैन धर्मं का प्रचार करने गए. वे हर जगह की सभ्यता और अच्छी चीज़ों को अपने अन्दर समाते गए. वे उस समय केवल दिन में 3 घंटे ही सोते थे. 12 साल तपस्या करने के दौरान वे बिहार, बंगाल, उड़ीसा और उत्तरप्रदेश भी गए. वहाँ पर उन्होंने जैन धर्म का प्रचार किया.
आध्यात्मिक यात्रा (Mahavira Spiritual Journey in Hindi)
महावीर जिस वन में थे वहाँ रहकर उन्होंने अपने ज्ञान को लोगों तक पहुँचाया. वन में 11 ब्राह्मणों को बुलाया गया ताकि वे महावीर के कहे शब्दों को लिखित रूप दे सके. यही आगे चलकर त्रिपादी ज्ञान, उपनिव, विगामिवा और धुवेइव कहलाये.
संस्था निर्माण (Formation of Jain in Hindi)
महावीर के शिष्य अपने मित्र और सगे सम्बन्धी को महावीर की शरण में लाये. महावीर उन्हें सुखद जीवन जीने और मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान देने लगे. लोगों की संख्या बढ़कर लाखों तक पहुँच गयी. उनकी संस्था में 14 हजार मुनि, 36 हजार आर्यिका, 1 लाख 59 हजार श्रावक और 3 लाख 18 हजार श्राविका थी. ये 4 समूह अपने आप में ही एक तीर्थ थे.
मृत्यु(Mahavira Death)
महावीर ने ना केवल लोगों तक अपना ज्ञान पहुँचाया बल्कि अभिजात वर्ग की संस्कृत के खिलाफ स्थानीय भाषा का भी निर्माण कर उन्हें फैलाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया. भगवान महावीर ने आखिरी प्रवचन पावापूरी में दिया था. वो समागम लगातार 48 घंटे चला था. अपने आखिरी प्रवचन को ख़त्म करने के बाद 527 ईसा पूर्व उन्हें मौक्ष की प्राप्ति हुई.
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भगवान महावीर स्वामी जी के साहस व तपस्या ने उन्हे 24 वें तिर्थंकर तक पंहुचाया व दुनिया के लिये एक सच्चाई, त्याग, तप, मानवता के रास्ते के दरवाजे खोल दिये उनके बारे में हमारे पास कोई शब्द तक नही है ! काश आज हम सभी उनके दिखाये सुझाये मार्ग पर थोड़ा भी सही रुप से चल पाते तो जो वर्तमान में लड़ाई झगड़ै स्वार्थ की राजनिती व गलत रास्ते पर चलना , यह सब कुछ नही होता व हम सभी शांती का जिवन जीते लेकिन हम उनके बताये रास्ते पर नही चल पा रहे है धन्य है ऐसी महान मुर्तियों को, नमन है हमारा उनको जिन्होने हार्ड तपस्या कर एक राजपुत घराणे का अंहकार छोड़कर जैन गुरु व बाद में तिर्थंकर बने. नमन…. हमारा उनके चरणो में.