हिन्दू धर्मं में शेर का महत्व, मणिकंदन की कहानी व अन्य जानकारियाँ | Manikandan Story and Importance of Lion in Hindu Mythology in Hindi
शेर एक ताकतवर जंगली शिकारी प्राणी हैं. भारत उन गिने चुने देशों में शामिल हैं जहाँ शेर पाया जाता हैं. भारत में पाए जाने वाले शेर रॉयल बंगाल टाइगर प्रजाति के हैं. यह भारत का राष्ट्रीय पशु हैं. यही शेर भारतीय पौराणिक कथाओं और संस्कृति में भी नजर आता हैं.
शेर की सवारी के बिना देवी दुर्गा और माता अम्बा की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. दुर्गा शक्ति का देवीय स्वरुप हैं. शिव पुराण और देवी पुराण के अनुसार महिषासुर नामक राक्षक से सारे देव परेशान हो गए थे. उसे वरदान प्राप्त था की कोई नर उसका वध नहीं कर सकता हैं. उस दानव को खत्म करने के लिए भगवान् ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी के मुख के प्रकाश से देवी दुर्गा का जन्म हुआ हैं. देवी दुर्गा ने ही महिषासुर का वध किया था. देवी दुर्गा का वाहन शेर ही हैं.
शेर का संबंध भगवान शिव से भी हैं. वे वस्त्र की जगह शेर की खल ही पहनते हैं. इसकी वजह यज हैं कि शुरू मैं शिव नग्न अवस्था में ही रहते थे. एक बार वे किसी वन में पहुंचे. वहा मौजुद ऋषि-मुनियों की पत्नियाँ उन पर मोहित हो गयी. लेकिन शिव इस बात से बेखबर थे. शिव की असली पहचान से अनजान ऋषि-मुनियों ने शिव को ख़त्म करने का फैसला लिया. उन्होंने अपनी विद्या से एक विशाल शेर का निर्माण किया और उसे शिव के रास्ते में एक गड्डे में छुपा दिया. लेकिन भगवान् शिव ने उस शेर को मारकर उसकी खाल को वस्त्र बना लिया. तब से शेर शिव के शरीर का अभिन्न अंग हैं.
मणिकंदन की कहानी (Story of Manikandan in Hindi)
एक हिन्दू देव और हैं जिनके संदर्भ में शेर का उल्लेख मिलता हैं. वो हैं भगवान अयय्पा जिन्हें केरल में पूजा जाता हैं. इन्हें मणिकंदन भी कहते हैं. मणिकंदन के जन्म की भी दिलचस्प कथा हैं. महिषासुर के वध से नाराज उनकी बहन महिषी ने कठोर तप किया. तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वरदान मांगने को कहा. महिषी ने वरदान में यह माँगा कि “विष्णु और शिव के संबंध से जन्मे पुत्र के अलावा और कोई भी उसे मार नहीं पाएगा”. शिव और विष्णु का पुत्र कभी पैदा नहीं होगा ऐसा सोचकर महिषी स्वयं की मृत्यु को असंभव समझ रही थी. और महिषी के उत्पात बढ़ गए थे. तब विष्णु ने कुर्मा अवतार के दौरान मोहिनी अवतार धारण कर लिया. मोहिनी रुपी विष्णु और शिव का एक पुत्र हुआ. जिसे उन्होंने एक नदी के किनारे छोड़ दिया.
पंदलम नाम के एक राज्य के राजा राजशेखर पंड्यन संतानहिन था. जंगल में रोते हुए बालक को ईश्वर का रूप समझकर वह अपने साथ ले गए और उसका नाम मणिकंदन रखा गया. यह नाम इसलिए रखा गया क्योकि उसके गले में एक घंटी बंधी हुई थी. और तमिल में मणि का अर्थ हैं घंटी और कद का मतलब है गला. कुछ समय बाद रानी को भी एक पुत्र हुआ और राज्य के एक मंत्री ने रानी के कान भर दिए कि मणिकंदन को ही राज्य का अगला राजा बनाया जाएगा. रानी ने मंत्री के कहने पर बीमारी का बहाना बनाया और मणिकंदन को कहा कि अब उनकी जान सिर्फ शेरनी के दूध से ही बच सकती हैं. फिर मणिकंदन शेरनी का दूध लेने के लिए जंगल की और निकल गए. जहां उन्हें महिषी के अत्याचारों के बारे में पता चला. ब्रह्मा के वरदान के अनुसार विष्णु और शिव का पुत्र होने के नाते मणिकंदन ने महिषी का वध कर दिया. उधर रानी मणिकंदन से छुटकारा पाकर खुश थी.
तभी कुछ दिनों बाद मणिकंदन एक खूंखार शेरनी पर सवार होकर वापस लौट आया और उसके साथ शेरनी के बच्चे भी आ गए. यह दृश्य देखकर राजा और रानी समझ गए की मणिकंदन एक सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि कोई दिव्य शक्ति हैं. मणिकंदन के जन्म का उद्देश्य पूरा हो चूका था. इसलिए उसने वहा मौजूद सभी को आशीर्वाद दिया और वहां से अद्रश्य हो गया. जिसके बाद राजा ने सबरीमाला में भगवान् अयप्पा यानि मणिकंदन का मंदिर बनवाया जहाँ आज भी लाखों की संख्या में लोग जाते हैं.
शेर भारत की सांस्कृतिक परंपरा में भी नजर आता हैं. महाराष्ट्र की वारली जाति के लोग वाघदेव की पूजा करते हैं. वो शेर को सभी देवो से बड़ा मानते हैं. और हर साल अपनी फसल का एक हिस्सा शेर के नाम अर्पित करते हैं. उनके मुताबिक शेर उर्वरता का प्रतीक हैं.
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